मेराज को चला दूल्हा मेराज को चला दूल्हा
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
ला-मकाँ पहुँचे हबीब-ए-किब्रिया मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
भीनी भीनी थी हवा और रंगे-गुलशन था खिला
कोयल-ओ-बुलबुल भी थे नग़्मा-सरा मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
प्यारे आक़ा के क़दम पर हज़रते-जिब्रील ने
अपने नूरानी लबों को रख दिया मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
हर तरफ़ शादी रची है, हर कोई है शादमाँ
आज महबूबे-ख़ुदा दूल्हा बना मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
जाने-ईमाँ जाने-इंसाँ की सलामी के लिए
आसमाँ पर मुंतज़िर थे अंबिया मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
हूरो-ग़िल्माँ और फ़रिश्ते मरहबा कहने लगे
जिस घड़ी पहुँचे फ़लक पर मुस्तफ़ा मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
पेश कर के अपना काँधा पा गए आला मक़ाम
ग़ौसे-आ’ज़म पेशवा-ए-औलिया मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
हम गुनहगारों से कितना प्यार है सरकार को
आप ने हक़ में हमारे की दुआ मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
ज़ाते-रब और ज़ाते-पाके-मुस्तफ़ा के दरमियाँ
कौन जाने किस क़दर था फ़ासला मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
रुक गए सिदरा पे जा के हज़रते-रूहुल-अमीं
सिदरा से आगे गया नूरे-ख़ुदा मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
गर्म बिस्तर भी रहा ज़ंजीर भी हिलती रही
आना-जाना मुस्तफ़ा का यूँ हुआ मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
चाँद तारों को ऐ आसिम नाज़ था ख़ुद पर बड़ा
आ गए वो भी नबी के ज़ेरे-पा मेराज में
मोजिज़ा कितना निराला ये हुआ मेराज में
शायरे-इस्लाम:
हज़रत मुहम्मद आसिम-उल-क़ादरी मुरादाबादी
नात-ख़्वाँ:
हज़रत ग़ुलाम मुस्तफ़ा क़ादरी
Meraj Ko Chala Dulha | mojza kitna nirala ye hua meraj me – तअर्रुफ़
यह नात हज़रत मोहम्मद आसिम-उल-क़ादरी मुरादाबादी की लिखी हुई एक बेहतरीन नात है, जो नबी पाक ﷺ की मेराज की रात के मौजिज़ात को बयान करती है। इस नात को ग़ुलाम मुस्तफा क़ादरी ने खूबसूरत आवाज़ में पेश किया है, जो सुनने वालों के दिलों को ईमान की रौशनी से मुनव्वर करती है।